किया था वादा
किया था वादा।
भोर भयो पनघट पर सब ।
सखियाँ मिल बतलाई।
गाए होरिया के गीत सब ।
ऋतु पिया मिलन की आई।
शर्म से झुकी झुकी नजरिया।
सखियों से नैना चुराए।
मोती बन आ गये अशुवन ।
पलकों बीच बैठ सताए।
पी विरह में पनिहारन।
गगरी ले चल उठाए।
चुनर गिर गिर जाए सिर से ।
गौरी सम्भल ना पाएँ।
फाल्गुन की बौछार उसके।
ह्दय को और तड़पाए।
पिछली बसन्त इसी पनघट पर।
परदेशी देखकर थी वह पलकें झुकाएं ।
प्यास बुझा कर चला गया अपनी।
पुनः मिलने कर वादा ।
आया ना दुबारा तकती रह गयी ।
अखियों से बहती सावन की धारा।
क्या बतलाएँ अब सखियों से।
इस भोर भये पनघट पर।
काल बनी सुबह की बेला ।
इन्तजार करती अंधियारी मरघट पर।
होली आ गयी लेकर रंगों की फुहार।
एक झलक जो दिखी पिया की।
विरहन भागन लागी उस और।
लगी गले से परदेशी के प्रेम रंग में रंग गयी।
नीलम गुप्ता🌹🌹 (नजरिया )🌹🌹
दिल्ली
Aliya khan
04-Jun-2021 07:01 PM
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
Reply
Shatakshi Chaturvedi
04-Jun-2021 11:49 AM
🙏🙏 nice Creation mam।।
Reply
Ravi Goyal
04-Jun-2021 09:57 AM
बहुत खूबसूरत रंगों से रची हुई रचना
Reply